लेखनी प्रतियोगिता -24-Jun-2022 - बेकरारी
कान्हा देखो जा रहे बृज को छोड़कर,
सारी गोपियों से वो मुंह को मोड़ कर।
सभी बदहवास सी यहाँ हुई जाती हैं,
बेसुध हो अपना होश खोए जाती हैं।
उदासी सभी के बीच में हैं छाई हुई ,
गोपियों के अधरो से मुस्कान गायब हुई।
काहे को तुम जाते हो छोड़कर उनको,
कान्हा हर गोपी तेरे प्रेम के आधीन हुई।
बेकरारी का आलम वो इतना बढ़ा गए,
गोपियों संग अश्रुओं की धार बहा गए।
श्रृंगार भी न मन को बहला रहा उनके,
विरह की वेदना से हिय तड़प रहे उनके।
कन्हैया नीर से भीग रहे नयन भी उनके ,
दर्शनों की प्यास हमेशा ही रहती जिनके।।
दैनिक प्रतियोगिता हेतु
Shrishti pandey
25-Jun-2022 11:09 AM
Nice
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Punam verma
25-Jun-2022 10:42 AM
Nice
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Abhinav ji
25-Jun-2022 07:50 AM
Very nice👍
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